सहिलो में समंदर के, रेत के घरोंदे का निशान ढूंढ़ता,
हू अतीत के पन्नो में, अपनी पहचान ढूंढ़ता हू!
बनाये थे उन तस्वीरों में, कुचियो के निसान ढूंढ़ता हू,
सजाये थे जो खवावो में, वो सपनों का माकन ढूंढ़ता हू,
चले थे साथ मिलकर, वो कदमो के निसान ढूंढ़ता हू,
सहिलो में समंदर के, रेत के घरोंदे का निसान ढूंढ़ता हू,
अतीत के पन्नो में, अपनी पहचान ढूंढ़ता हू!
हू अतीत के पन्नो में, अपनी पहचान ढूंढ़ता हू!
बनाये थे उन तस्वीरों में, कुचियो के निसान ढूंढ़ता हू,
सजाये थे जो खवावो में, वो सपनों का माकन ढूंढ़ता हू,
चले थे साथ मिलकर, वो कदमो के निसान ढूंढ़ता हू,
सहिलो में समंदर के, रेत के घरोंदे का निसान ढूंढ़ता हू,
अतीत के पन्नो में, अपनी पहचान ढूंढ़ता हू!
वक़्त के साथ जो दब गए वो अरमान ढूंढ़ता हू,
सपने जो चढ़ सके न, वो परवान ढूंढ़ता हू,
खिजा के फूलो में, बसंत का मुस्कान ढूंढ़ता हू,
पतझर के आंगन में, बहारो के आने का सामान ढूंढ़ता हू,
बुलंद हौसलों में , वक़्त की उडान ढूंढ़ता हू,
सहिलो में समंदर के, रेत के घरोंदे का निसान ढूंढ़ता हू,
अतीत के पन्नो में , अपनी पहचान ढूंढ़ता हू!
सपने जो चढ़ सके न, वो परवान ढूंढ़ता हू,
खिजा के फूलो में, बसंत का मुस्कान ढूंढ़ता हू,
पतझर के आंगन में, बहारो के आने का सामान ढूंढ़ता हू,
बुलंद हौसलों में , वक़्त की उडान ढूंढ़ता हू,
सहिलो में समंदर के, रेत के घरोंदे का निसान ढूंढ़ता हू,
अतीत के पन्नो में , अपनी पहचान ढूंढ़ता हू!
अब तीर निकल कर वापस ना आए, वो कमान ढूढता हु,
वक्त के साथ जो ना बदले,वो जुवान ढूढता हु,
दे सकूँ वो मुकम्मल हासिल को, वो इंसान ढूढता हु,
जहाँ सच हो सपने सब के, वो जहान ढूढता हु,
साहिलों में समंदर के रेत के, घरौंदों का निसान ढूढता हु,
अतीत के पन्नो में अपनी, पहचान ढूढता हु!
वक्त के साथ जो ना बदले,वो जुवान ढूढता हु,
दे सकूँ वो मुकम्मल हासिल को, वो इंसान ढूढता हु,
जहाँ सच हो सपने सब के, वो जहान ढूढता हु,
साहिलों में समंदर के रेत के, घरौंदों का निसान ढूढता हु,
अतीत के पन्नो में अपनी, पहचान ढूढता हु!